आम करदाता एवं व्यापारी के लिए – सरल हिंदी मेंMSME 43B(h) से जुड़े 10 अहम् सवाल-जवाबसुधीर हालाखंडी |
प्रश्न | उत्तर | |||||||||
1.यदि आपने किसी व्यापारी (जो कि निर्माता या सेवा प्रदाता नहीं है) से माल खरीदा है तब भी क्या यह प्रावधान लागू होगा | नहीं , यह प्रावधान केवल निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं से ख़रीदे माल या सेवा पर ही लागू है क्यों कि MSMED ACT 2006 की धारा 2 (g) में जो “एंटरप्राइज” की परिभाषा दी गई है उसमें ट्रेडर्स को शामिल नहीं किया गया है अर्थात यदि आपने किसी व्यापारी या ट्रेडर से माल खरीदा है तो यह प्रावधान लागू नहीं है. इसके अतिरिक्त यह प्रावधान केवल सूक्ष्म एवं लघु (माइक्रो एवं स्माल ) इकाइयों से की गई खरीद पर ही लागू है और इससे Medium इकाइयाँ शामिल नहीं है.
अभी हाल ही में “ट्रेडर्स” को भी MSMED ACT 2006 में शामिल किया गया था लेकिन वह केवल Priority Sector के ऋण हेतु था और इसी कारण से इस सम्बन्ध में एक विवाद या भ्रम चल रहा है लेकिन अभी भी इस कानून के तहत एंटरप्राइज की परिभाषा में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है इसलिए अभी जो स्तिथि है उसके अनुसार ट्रेडर्स इस प्रावधान से बाहर है अर्थात यदि कोई खरीद ट्रेडर्स से की जाती है तो 43 B के प्रावधान लागू नहीं होंगे. यहाँ यह ध्यान रखे कि यदि TRADERS किसी MSME से माल खरीदते हैं तो उनको समय पर भुगतान करना ही होगा वरना इस धारा के प्रावधान लागू हो जायेंगे. |
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2.यदि क्रेता और विक्रेता आपस में एक अग्रीमेंट कर लेते हैं कि वे माल के भुगतान का लेनदेन 90 दिन में करेंगे (जैसा कि कुछ जगह प्रचलन है) तब क्या यह अवधि 90 दिन हो जायेगी. | नहीं , अग्रीमेंट के जरिये 15 दिन की अवधि को 45 दिन तक बढाया जा सकेगा लेकिन 45 दिन से अधिक नहीं बढाया जा सकेगा इसलिए यदि क्रेता और विक्रेता आपस में 90 दिन में भुगतान का कोई अग्रीमेंट कर भी लेते हैं तो भी यह प्रावधान 45 दिन बाद ही लागू हो जाएगा.
MSMED ACT 2006 के अनुसार यदि क्रेता और विक्रेता के बीच कोई एग्रीमेंट नहीं है तो भुगतान 15 दिन में और यदि एग्रीमेंट है तो भुगतान 45 दिन में हो जाना चाहिए. |
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3.क्या पूरे बर्ष ही इस धारा 43B के इस प्रावधान से बचने के लिए 15 दिन या 45 दिन में भुगतान करना होगा ?
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आयकर के इस प्रावधान के तहत पूरे साल यदि भुगतान देरी से होती है लेकिन 31 मार्च 2024 के पहले भुगतान हो जाता है तो फिर इस धारा 43 B(h) के तहत कुछ भी नहीं जुड़ेगा क्यों कि देरी से किया गया भुगतान , जब भी किया जाए उस वित्त वर्ष में छूट मिल जायेगी. इस प्रकार यदि यह भुगतान 31 मार्च 2024 को या इसके पहले हो जाता है तो फिर उसकी छूट मिल जायेगी.
“भुगतान में 15 दिन या 45 दिन (जैसी भी स्तिथि है) से अधिक देरी होती है तो फिर भुगतान उस वर्ष में मिलेगा जिस वर्ष में भुगतान किया जाता है.” |
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4. क्या यह प्रावधान उन्हीं निर्माताओं या सेवा प्रदाताओं द्वारा बेचे गए माल या सेवा पर ही लागु होगा जो कि MSMED ACT 2006 के तहत रजिस्टर्ड हैं ?
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MSMED ACT 2006 की धारा 2(n) में जो सप्लायर की परिभाषा दी गई है उसके अनुसार “सप्लायर” वह है जो कि को इस ACT की धारा 8(1) तहत एक मेमोरेंडम दाखिल करता है जिसे आप रजिस्ट्रेशन ( उद्यम आधार) भी कह सकते हैं. इसी कानून की धारा 15 जो कि भुगतान की समय सीमा का निर्धारण करती है उसमें भी “सप्लायर” शब्द का जिक्र है और MSMED ACT 2006 यही धारा 15 आयकर कानून की इस नई धारा 43B(h) का आधार है और इसलिए यह प्रावधान तभी लागू होगा जब कि आपका विक्रेता इस कानून के तहत धारा 8(1) में लिखा मेमोरेंडम प्रस्तुत कर चुका हो अर्थात उद्यम आधार जारी करवा चुका हो .
अब यदि ऐसा है तो यह प्रावधान और भी उलझा हुआ बनाती है क्यों कि पहले तो हर क्रेता को यह मालुम करना होगा कि उसका विक्रेता ने MSMED ACT 2006 के तहत मेमोरेंडम भरा है या नहीं उसने उद्यम आधार जारी करवाया भी है या नहीं. . यहाँ यह ध्यान रखें कि जब एक कानून के प्रावधान को दूसरे कानून के प्रावधानों से जोड़ा जाता है और फिर एक कानून का प्रावधान बनाया जाता है तो फिर इस तरह के भ्रम बने रहना स्वाभाविक है और इस तरह की स्तिथि से कानून निर्माता यदि बचें तो कर दाताओं को कर कानूनों का पालन करना सरल एवं सुगम हो जाएगा. कानून निर्माताओं सीधा -सीधा कानून यह बनाना चाहिए कि आखिर वे चाहते क्या है ताकि कम से कम भ्रम और असमंजस की स्तिथि नहीं रहे. |
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5.सूक्षम (माइक्रो) एवं लघु (स्मॉल) इकाइयाँ क्या है ?
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सूक्षम एवं लघु इकाइयों के लिए टर्नओवर एवं प्लांट , मशीनरी एवं उपकरण में निवेश की Composite सीमा निम्प्रकार से तय की गई है :-
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6.आयकर कानून की धारा 43 B पूरे वर्ष ही इस 15 एवं 45 दिन के भुगतान की अवधि को ध्यान में नहीं रखना है लेकिन 31 मार्च 2024 के आस पास की गई खरीद पर इस अवधि का विशेष प्रभाव पडेगा और ध्यान रखना पडेगा कि पूरे वर्ष भुगतान देरी से होने पर भी भुगतान वित्तीय वर्ष की समाप्ती के अंतिम दिन के पहले हो जाए .
यह बात समझने में थोड़ी परेशानी आ रही है आप इसे एक उदाहरण के जरिये समझाने का कष्ट करें .
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आइये इसे एक उदहारण के जरिये समझ लीजिये कि यदि किसी करदाता ने माइक्रो या स्माल इंटरप्राइजेज से कोई माल 10 लाख रूपये में 1 अप्रैल 2023 को खरीदा है तो MSMED ACT 2006 के अनुसार 45 दिन के हिसाब से भी इसका भुगतान 15 मई 2023 को हो जाना चाहिए अब अगर इसका भुगतान 15 मई 2023 तक नहीं होता है तो अब यह खर्च व्यापारिक आधार पर नहीं मिलकर वित्तीय वर्ष में भुगतान के आधार पर मिलेगा. अब इसका भुगतान 31 मार्च 2024 तक भी हो जाता है तो भी भुगतान के आधार पर यह खर्च वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिल जाएगा. लेकिन यदि इसका भुगतान 31 मार्च 2024 के बाद किया जाता है तो फिर वित्तीय वर्ष 2023-24 में इसकी छूट नहीं मिलेगी और इसकी छूट उस करदाता को तब मिलेगी जब इसका भुगतान कर दिया जाए.
आइये एक और स्तिथि देखें कि माल ही जब 25 फरवरी 2024 को खरीदा हो तब 10 अप्रैल 2024 तक भी यदि भुगतान कर दिया जाता है तो भी इस खर्च की छूट वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिल जायेगी क्यों कि इसके भुगतान की MSMED ACT के तहत निर्धारित अधिकत्तम तिथि ही 10 अप्रैल 2024 है और इस तिथि तक भुगतान हो गया है तो इसकी छूट वित्त्तीय वर्ष 2023-24 में ही मिल जायेगी . इन दोनों स्तिथियों में यह मान लिया गया है कि क्रेता और विक्रेता के मध्य भुगतान करने का 45 दिन का अनुबंध है और यदि ऐसा कोई अनुबंध नहीं है तो फिर यह अवधि 15 दिन ही होगी. इस प्रकार से इस उदहारण से यह स्तिथि स्पष्ट हो जाती है कि आयकर कानून के इस नए प्रावधान 43B(h) के अनुसार भुगतान की इस अवधि में पूरे वर्ष के दौरान यदि देरी भी हो तो कोई फर्क नही पडेगा बशर्ते कि 31 मार्च 2024 अर्थात वित्तीय वर्ष की समाप्ति के पहले भुगतान हो जाता है. |
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7.क्या इस प्रावधान से लघु/सूक्षम उद्योगों को हमेशा लाभ ही होगा ?
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वैसे तो सूक्ष्म और छोटे उद्यम को भुगतान समय पर ही मिलना चाहिए और इसके अतिरिक्त भी सूक्ष्म और छोटे उद्यम को भी दूसरे सूक्ष्म और छोटे उद्यम को भी समय पर भुगतान कर देना चाहिए लेकिन इस प्रावधान के द्वारा हमेशा ही सूक्ष्म और लघु उद्यम को लाभ होगा ऐसा व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है आइये इसे भी एक उदहारण के जरिये समझने का प्रयास करें :-
यदि किसी करदाता ने माइक्रो या स्माल इंटरप्राइजेज से कोई माल 10 लाख रूपये में 1 अप्रैल 2023 को खरीदा है तो 45 दिन के हिसाब से भी इसका भुगतान 15 मई 2023 को हो जाना चाहिए अब अगर इसका भुगतान 15 मई 2023 तक नहीं होता है तो अब यह खर्च व्यापारिक आधार पर नहीं मिलकर रोकड़ या भुगतान के आधार पर मिलेगा. अब इसका भुगतान 31 मार्च 2024 तक भी हो जाता है तो भी भुगतान के आधार पर यह खर्च वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिल जाएगा. इसलिए प्रभावी रूप से इस प्रावधान का व्यवहारिक प्रभाव तब ही देखा जा सकता है जब कि खरीद या खर्च वर्ष के आखिरी के महीनों में हुआ हो क्यों कि इस प्रावधान के तहत भुगतान का 31 मार्च तक का समय तो है ही. लेकिन एक बात तो है ही कि उन्हें कम से कम 31 मार्च तक तो भुगतान मिलने की संभावना बढ़ ही जायेगी क्यों कि ऐसा नहीं होने पर विक्रेता को उस बकाया राशि पर आयकर का भुगतना करना पडेगा . लेकिन कई बार ऐसा भी होने की सम्भावना है कि इन उद्यमियों से माल कम खरीदा जाएगा ताकि 43 B (h) के प्रावधान से बचा जा सके और विशेष तौर पर वर्ष के अंत में स्टोक को कम से कम रखा जाए या निर्माताओं की जगह व्यपारियों (Traders) और यदि ऐसा होता है तो सूक्ष्म और लघु इकाइयों को इस प्रावधान से लाभ के साथ -साथ नुक्सान होने की संभावना भी बनती है .
देखिये यह सारा एकाधिकार (Monopoly or Upper hand ) का खेल है यदि विक्रेता का एकाधिकार है तो फिर उसका भुगतान यों भी नहीं रुकता है और वे अपनी शर्तों पर भुगतान प्राप्त करते हैं और कई बार एडवांस भुगतान भी लेते हैं लेकिन ये सारी समस्याएँ तब उत्पन्न होती है जब कि क्रेता का एकाधिकार होता है जैसा कि बहुत से प्रोडक्ट्स में होता है जहां प्रतियोगी बाज़ार में माल आधिक्य में उपलब्ध है वहां क्रेता अपनी शर्तें मनवा लेता है और यहीं भुगतान में देरी होती है और इस प्रावधान के बाद भी क्रेता अपनी तरफ से इस प्रावधान के कारण विक्रेताओं के लिए नकारात्मक स्तिथियाँ पैदा कर सकते हैं जिसमें MSME निर्माताओं की जगह ट्रेडर्स से माल खरीदना भी शामिल है इसलिए यह प्रावधान यों तो MSME के लाभ के लिए ही लाया गया है लेकिन यों आम राय यह है कि MSME को इस प्रावधान से इस समय नुक्सान अधिक होगा. जैसे हमने ऐसे उदाहरण भी देखने को मिलें हैं कि जहाँ एकाधिकार वाले खरीददारों ने अपने विक्रेताओं को सुझाव दिया है कि वे किसी और के नाम एक ट्रेडिंग फर्म बना लें और फिर उस फर्म से उन्हें सप्लाई करे . मैंने आपको बताया कि यह सब एकाधिकार का प्रश्न है . इस प्रावधान से अंत में तो फायदा तो होगा ही लेकिन अभी शुरूआती दौर में कुछ परेशानियां भी आएंगी . |
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8. क्या यह प्रावधान धारा 44 AD जैसी धाराओं जिनमें अनुमानित आय दिखाने का प्रावधान है के लिए भी धारा 43 (B) (h) का प्रावधान लागू होगा.
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इस विषय में अलग- अलग राय उपलब्ध है लेकिन इस समय व्यवहारिक रूप से देखें और अब अधिकांश विशेषज्ञों जो राय बन रही है उसके अनुसार धारा 44AD जैसी धाराओं के तहत आने वाले निर्धारिती पर यह प्रावधान लागू नहीं होती है .
आइये इसके लिए धारा 44 AD को देख लें जिसमें यह लिखा है कि धारा 44 AD पर धारा 28 से लेकर 43 C का कोई प्रभाव नहीं पडेगा . Section 44AD(1) :- Notwithdtanding anything to the Contrary contained in Section 28 to 43 C in case of eligible assessee ………. लेकिन दूसरी और हम यदि धारा 43B को देखे तो वहां भी एक RIDER लगा हुआ है जहाँ यह लिखा है कि धारा 43 B को लागू करते समय इस धारा पर आयकर कानून की किसी भी धारा का कोई प्रभाव नहीं पडेगा तो फिर धारा 43 B आयकर कानून की हर धारा को सुपर सीड करती है इसलिए धारा 43 B का प्रभाव सामान्य रूप से अधिक प्रतीत होता है इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि धारा 44 AD के रिटर्न्स पर भी इस धारा 43 B का प्रभाव नहीं रहेगा लेकिन धारा 44 AD स्वयं भी धारा 43 B को सुपरसीड करती है इसलिए व्यवहारिक रूप से अभी भी 44 AD के रिटर्न भरते समय 43 B के इस प्रावधान का ध्यान रखा जाना आवशयक नहीं है.इस समय अधिकाँश विशेषज्ञों की यही राय है इसलिए अभी आ यह मान सकते हैं कि यह प्रावधान 44 AD में भरे जाने वाले रिटर्न्स पर लागू नहीं है . वैसे भी आप देखें तो व्यवहारिक रूप से इस प्रावधान को अनुमानित आय के रिटर्न पर लागू करना किस तरह संभव होगा ? लेकिन यह सवाल विवादस्पद जरुर है और सरकार को इस सम्बन्ध में स्पष्टीकरण जारी कर देना चाहिए. आप मेरे जवाब में ही देख लीजिये कितने किन्तु और लेकिन लगे हैं इसलिए यहाँ यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि इस तरह के कानून सरल और स्पष्ट हो तो अधिक ठीक रहें अन्यथा इस तरह से बने कानून ना सिर्फ अपना महत्त्व खो देते हैं बल्कि भ्रम और असमंजस भी पैदा करते हैं. |
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9. क्या पिछले वर्ष का बकाया भी इस धारा 43B(h) के अधीन करयोग्य हो जाएगा अर्थात मान लीजिये वित्तीय वर्ष 2022-23 का बकाया चल रहा है तब क्या होगा ? | – यह धारा 43B(h) 01-04-2024 से लागू हुआ है अर्थात यह वित्तीय वर्ष 2023-24 में हुए व्यवहारों पर लागू है इसलिए यह इस वर्ष से पहले के वर्षों से सम्बंधित बकाया पर यह प्रावधान लागू नहीं होगा.
लेकिन एक बात ध्यान रखें कि यदि आपका पिछले साल का बकाया है और इस साल भी आपने माल खरीदा है तो फिर इस साल का जो भी आप भुगतान करते हैं उसे पिछले साल के बकाया माना जा सकता है तो फिर ऐसे में भी संकट पैदा हो सकता है इसलिए यदि आपका पिछला बकाया है और इस साल भी आपने माल खरीदा है तो फिर इस प्रावधान का ध्यान रखना जरुरी होगा. आइये इस समस्या को एक उदाहरण से समझने का प्रयास करें :- धारा 43 बी – एक कंपनी की पुस्तकों में 31-03-2023 को एक लेनदार का शेष 40 लाख रु. था और वर्ष के दौरान 23-24 खरीद 30 लाख रूपये थी और वर्ष के दौरान उस लेनदार को किया गया कुल भुगतान 60 लाख था। अब क्लोजिंग बैलेंस 10 लाख है. वर्ष के दौरान खरीदारी 30 लाख और भुगतान 60 लाख था और यदि यह माना जाए कि पहला भुगतान पिछले साल का था तो फिर यह बचा हुआ 10 लाख रुपया इस धारा के अधीन आ सकता है . इस समय असेसमेंट फेसलेस हो रहें है तो इस मामले में आप सुरक्षात्मक रुख ही रखें तो उचित रहेगा. |
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10.कोई एक यूनिट माइक्रो(सूक्ष्म) है , स्माल (लघु)है या मीडियम (मध्यम) है ये किस तरह से पता लगेगा ? क्या क्रेता से उसकी बैलेंस शीट मांगनी होगी या वह जो कह दे वही सही मानना होगा ? | ऐसी कोई जरुरत नहीं है कि आप अपने क्रेता से उसकी बैलेंस शीट मांगे . इसके लिए आपको उसके उद्यम आधार नम्बर की जरुरत पड़ेगी जिसके जरिये आप उस क्रेता का स्टेटस MSME पोर्टल पर जाकर मालूम कर सकेंगे. इस तरह की सुविधा अभी हाल ही में MSME पोर्टल पर प्रारम्भ की गई है .
किसी पार्टी के उद्यम नंबर के माध्यम से एमएसएमई पंजीकरण विवरण की जांच करना बहुत ही सरल है। एक बार जब आपके पास उद्यम नंबर हो, तो आप उद्यम नंबर द्वारा एमएसएमई खोज को निष्पादित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठा सकते हैं :- सर्च बॉक्स में एमएसएमई का 19 अंकों का यूआरएन दर्ज करें और कैप्चा डाल दें । बस आपको सारा विवरण मिल जाएगा . इस सम्बन्ध में आपको उस इकाई का हर साल का स्टेटस भी मिल जाएगा |
नोट :- ये सभी सवाल – जवाब आपको इस विषय में समझने का मौक़ा देंगें और हो सकता है कि आप कुछ जवाबों से आप सहमत नहीं हो. इनमें से एक सवाल पर तो मेरी स्वयं की राय पहले से बदलती हुई नजर आती है लेकिन जो कुछ भी लिखा गया है वह आपको इस महत्वपूर्ण विषय पर सोचने और समझने का अवसर अवश्य देगा.
- सुधीर हालाखंडी
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