मैं जीएसटी पर कई वर्षों से अध्ययन कर रहा हूँ जिसमें करदाताओं की समस्याओं से भी मेरा सीधा सम्बन्ध रहा है और इस समय जीएसटी के तहत आ रही विभिन्न समस्याओं और कठिनाइयों के समाधान के लिए मैं यहाँ एक विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत कर रह हूँ जिन मुख्य मुख्य बिंदुओं पर विचार कर इस कर प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है . इसके पहले मैं आपको यह बता दूँ कि जीएसटी की कुछ समस्याएं ऐसी है जिनमें जिस डीलर के प्रति मांग कायम की जाती है उसकी गलती सिर्फ तकनीकी होती है और कर चोरी का कोई मानस या सबूत नहीं होता है तो फिर ऐसे में क्यों कि यह एक नया कर था तो गलतियां होना संभव था इसलिए सरकार को एक सरल एमनेस्टी स्कीम लानी चाहिए जिससे इस तरह के डीलर दोहर कर या भारी पेनाल्टी से बच सके. आइये मुख्य समस्याओं पर चर्चा करें- सुधीर हालाखंडी |
- विक्रेता द्वारा रिटर्न न भरने या फर्जी या गैर-मौजूद घोषित होने पर ITC रुकना: विक्रेता द्वारा रिटर्न न भरने या उसे फर्जी या गैर-मौजूद घोषित कर देने पर खरीदार का ITC रुक जाता है, जिससे व्यापार में असुविधा और आर्थिक नुकसान होता है। विक्रेता की गलती पर खरीदार के लेजर में इनपुट की राशि डेबिट कर दी जाती है, जबकि इसकी वसूली विक्रेता से होनी चाहिए। बिना नोटिस के ITC लेजर से विभाग की छेड़छाड़ को रोका जाना चाहिए और इसकी सीधी -सीधी प्रक्रिया वह होनी चाहिए कि इसकी वसूली विक्रेता से की जाए और केवल उन्हीं मामलों में जहाँ क्रेता की मिलीभगत हो वहां क्रेता को दंड दिया जाना चाहिए. इसके अलावा क्रेता किस तरह माल ख़रीदे कि उसकी इनपुट क्रेडिट सुरक्षित रहे इसका कोई और उपाय ही नहीं है . कई बार यह कहा जाता है कि आप बोगस विक्रेताओं से डील ही नहीं करे तो फिर सरकार यह उपाय बताये कि बोगस विक्रेता को चिन्हित करने का तरीका क्या है या फिर सरकार ही कोई बोगस डीलर्स की लिस्ट जारी कर दे. इस सम्बन्ध में आप कह सकते हैं कि सरकार को पहले से कैसे पता लगे तो फिर आप बता दीजिये कि एक सामान्य क्रेता को यह कैसे पता लगे ?
- विक्रेता का रिटर्न लेट होने पर ITC का नुकसान: विक्रेता का रिटर्न समय पर न होने पर खरीदार को एक माह का ITC नुकसान झेलना पड़ता है, जो अनुचित है और व्यापार में रुकावट पैदा करता है। विक्रेता के ऊपर खरीदार का कोई ऐसा अधिकार नहीं है कि वह उससे कर का भुगतान कर समय पर टैक्स भरवा सके, लेकिन सरकार को यह अधिकार है। इसलिए, इन अधिकारों का प्रयोग कर सरकार विक्रेता से जो भी वसूली करनी है वह करे लेकिन क्रेता का इसमें क्या दोष है तो फिर इसके लिए यह होना चाहिए कि क्रेता को मिसमैच दूर करने के लिए एक निर्धारित समय दिया जाना चाहिए और उसके बाद भी विक्रेता कर जमा नहीं करा पाता है तो उससे कर वसूल किया जाना चाहिए .
- ई-वे बिल में छोटी गलती पर जुर्माना: ई-वे बिल में छोटी सी गलती होने पर भी भारी जुर्माना लगाया जाता है, जो व्यापारियों के लिए एक बड़ी परेशानी है। इस प्रावधान को लचीला बनाया जाए ताकि छोटी गलतियों पर जुर्माना न लगे। ई – वे बिल की जब चेकिंग होती है तब डीलर को वहां कोई भी लीगल राय प्राप्त करने का साधन नहीं होता है और इस सम्बन्ध में उसका ड्राईवर ही उसका एक मात्र प्रतिनिधी होता है जो इस बारे में कुछ नहीं समझता है . सरकार टैक्स चोरों को पकडे यह तो उचित है लेकिन छोटी -छोटी गलतियों पर पेनाल्टी लगना उद्योग और व्यापार के लिए उचित नहीं है .
- आरसीएम का भुगतान न कर पाने पर दोहरा कर: यदि व्यापारी RCM का भुगतान समय पर नहीं कर पाता, तो उसे दोहरा कर चुकाना पड़ता है, क्योंकि बाद में उसे उस पर क्रेडिट नहीं मिलता। RCM खुद ही एक उलझाने वाला प्रावधान है और इसके कारण करदाताओं को काफी परेशानी होती है। इस प्रावधान को और सरल बनाया जाए।
RCM के लिए जीएसटी को लागू किये जाने के समय जो प्रावधान बनाया गया था उसे प्रारम्भ में ही अव्यवहारिक मानते हुए इसका बहुत बड़ा हिस्सा हटा लिया गया था लेकिन इसमें जो हिस्सा बच गया है और डीलर ने उसे चुकाया नहीं है तो उसे उसकी क्रेडिट उसे नहीं मिली है लेकिन अब यदि उससे इसकी वसूली की जा रही है तो वह दोहरा कर ही है और उस पर भी ब्याज और पेनाल्टी भी लग रही है .
- नोटिस की संख्या में वृद्धि: जीएसटी के तहत व्यापारियों को प्रतिदिन बढ़ती नोटिस की संख्या का सामना करना पड़ रहा है, जिससे व्यापार करने में बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं। मानव हस्तक्षेप रहित कर प्रणाली का दावा किया गया था, लेकिन वर्तमान में यह हस्तक्षेप पिछली कर प्रणाली के मुकाबले बहुत अधिक हो गया है।
जितनी संख्या में जीएसटी में नोटिस आ रहे हैं उनकी संख्या इससे पूर्व लागू हुई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली के मुकाबले बहुत अधिक है जिससे यह संकेत आता है कि इस प्रणाली में ही कहीं ना कहीं दोष है जिसे दूर करना आवशयक है . सबसे अधिक नोटिस ही इनपुट क्रेडिट के सम्बन्ध में आते हैं और इस सम्बन्ध में सबसे बड़ी खामी यह है कि खरीददार को उसने माल किससे खरीदा है इसकी जानकारी विभाग को देने का कोई प्रावधान ही नहीं है और इस तरह से यह कर केवल विक्रेता द्वारा दी गई सूचना पर आधारित कर बन गया है और उसके बाद कोई विक्रेता यदि कोई गलती करता है या कर की चोरी करता है तो उसके लिए क्रेता को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है और यही इस कर प्रणाली की सबसे बड़ी कमी है .
- GSTR-3B में संशोधन की सुविधा: जीएसटी में GSTR-3B एक प्रमुख रिटर्न है, लेकिन इसमें रिटर्न भरने के बाद संशोधन का कोई प्रावधान नहीं है। इससे जीएसटी रिटर्न्स में गलतियों का सुधार नहीं हो पाता है और बहुत से नोटिस इसी कारण से जारी होते हैं। रिटर्न के आपसी आंकड़ों के समायोजन में परेशानी आती है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जीएसटी लागू होने के 7 साल लगभग हो चुके हैं लेकिन अभी तक यह पता नही लगा कि GSTR -3B को कौनसा कानून या प्रक्रिया की कमी रिवाइज नहीं होने दे रही है तो फिर यह जीएसटी को हमारे देश में लागू करने की प्रक्रिया का दोष है.
- कम्पोजीशन डीलर्स का वार्षिक रिटर्न: कम्पोजीशन डीलर्स का वार्षिक रिटर्न भरने की निर्धारित तिथि 30 अप्रैल है, जो बहुत ही जल्दी है, जबकि रेगुलर डीलर्स को अपना वार्षिक रिटर्न भरने के लिए 9 महीने का समय मिलता है। इसके साथ ही कम्पोजीशन डीलर्स की खरीद की विगत मांगने का कोई औचित्य नहीं है।
कम्पोजीशन डीलर्स की स्तिथि यह माना गया था कि जीएसटी की जटिल प्रक्रियाओं का पालन करना उसके लिए संभव नहीं है तो फिर यह कैसे हो सकता है कि वे सिर्फ एक माह में अपने हिसाब किताब तैयार कर अपना वार्षिक रिटर्न पेश कर सके जिममें उस अपनी खरीद की डिटेल्स भी देनी है .
- नए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया: नए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया काफी कठिन है और रजिस्ट्रेशन में व्यवसाय स्थल का हर केस में भौतिक सत्यापन होता है और इसकी प्रक्रिया भी अलग-अलग जगह भिन्न-भिन्न है। 100 प्रतिशत भौतिक सत्यापन की उपयोगिता पर सवाल उठता है। रिस्क असेसमेंट के बाद चयनित डीलर्स का ही भौतिक सत्यापन होना चाहिए वरना यह प्रक्रिया काफी अव्यवहारिक हो जाती है। रजिस्ट्रेशन के लिए स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) जारी किया जाए। क्या यह सरकार का फैसला है कि 100 प्रतिशत केसेस में व्यवसाय स्थल का भौतिक सत्यापन होगा और यदि ऐसा है तो फिर सरकार को स्पष्ट करना चाहिए और यदि ऐसा नहीं है तो फिर इस बारे में भी एक सर्कुलर जारी होना चाहिए ताकि इस प्रक्रिया में कोई दोष हो तो सके और इस बारे में जारी असमंजस भी दूर हो सके.
- धारा 16(4) के तहत ITC का नुकसान: धारा 16(4) के तहत यदि रिटर्न निर्धारित तिथि के बाद देर से पेश होता है तो न तो ITC मिलती है और न ही ITC आगे खरीदार को दी जा सकती है, जबकि सरकार को कर तो मिल चुका होता है। इस प्रावधान से व्यापारी को आर्थिक नुकसान होता है और यह अनुचित है। इस स्तिथि में सरकार को कर तो पूरा मिल जाता है लेकिन ITC नहीं मिल पाने के लिए उद्योग और व्यापार के लिए यह एक दोहरा कर है और फिर सरकार देरी से भरे रिटर्न और कर पर ब्याज और पेनाल्टी भी लेती है तो फिर यह ITC को रोके जाने का प्रावधान कहाँ तक उचित है .
देखिये ठीक है कि सरकार इस तरह का कानून बना कर एक तरह का अनुशासन बनाना चाहती है जो कि बहुत जरुरी है लेकिन एक नए कर की स्तिथि में इस तरह की समय सीमा का पालन होने में गलतियां हो सकती है तो फिर अब तक इस सम्बन्ध में कोई समय सीमा की गलती हुई है लेकिन कर की कोई चोरी नहीं हुई है तो फिर इस सम्बन्ध में एक एमनेस्टी स्कीम आनी चाहिए और इन सभी प्रारम्भिक वर्षों में क्रेता और विक्रेता की ITC सम्बन्धी समस्या को दूर किया जाना चाहिए .
- कर दरों की संख्या में कमी: वर्तमान में GST के तहत कई कर दरें हैं जैसे 3%,6%,5%,12%, 28% आदि, जिससे व्यापारियों के लिए जटिलता बढ़ जाती है। कर दरों की संख्या को कम किया जाए और इसे सरल बनाया जाए, ताकि व्यापारियों को सहूलियत मिल सके और कर प्रणाली अधिक पारदर्शी और सुगम हो। एक देश एक कर तो ठीक है लेकिन कर की दरें भी सीमित होनी चाहिए और फिर जब जीएसटी का राजस्व लगातार बढ़ता जा रहा है तो फिर कर दरों में समायोजन में देरी क्यों है. इस सम्बन्ध में हमारी सरकार से अब कर दाताओं को बहुत उम्मीदें है .
- यात्री वाहनों पर ITC की सुविधा: वर्तमान में जीएसटी के तहत व्यापारीगण स्कूटर, मोटरसाइकिल और कारों पर ITC का लाभ नहीं उठा सकते, जबकि कई व्यापार में इन वाहनों के बिना व्यापार करना संभव नहीं है, विशेषतौर पर दुपहिया वाहनों के। इन पर ITC रोकने का कोई औचित्य नहीं है। इसे एक व्यापक अध्ययन कर कुछ शर्तों के साथ बहाल किया जाए।
हो सकता है कि प्रारम्भिक दौर में किसी एक धारणा के तहत इस तरह का अतार्किक प्रतिबन्ध लगाया गया था जिसे अब जब जीएसटी राजस्व में स्थायित्व आने के कारण अब हटा लेना चाहिए.
- सीमेंट और दुपहिया वाहनों पर कर की दर: वर्तमान में सीमेंट और दुपहिया वाहनों पर कर की दर 28 प्रतिशत है। क्या यह वस्तुएं विलासिता की श्रेणी में आती हैं? इसका अध्ययन कर इन वस्तुओं पर कर की दर को कम किया जाए, ताकि व्यापारी और उपभोक्ता दोनों को राहत मिल सके। ये दोनों ही वस्तुएं आम आदमी द्वारा बहुतायत में काम में ली जाती है.
- लक्ष्य आधारित जीएसटी: राज्य अपने जीएसटी लक्ष्य तय करते हैं और फिर उन्हें पूरा करने के लिए सर्वे किए जाते हैं, जिनमें लक्ष्य के हिसाब से सर्वे को समाप्त करने के लिए मांग कायम की जाती है। व्यवहार में यही होता है लेकिन यह एक अव्यवहारिक प्रक्रिया है। जब सरकार का कर अपने आप बढ़ रहा है तो फिर कृत्रिम तरीके से वसूला गया कर भविष्य में देश के व्यापार के लिए एक खतरा है। इस प्रवृत्ति को रोका जाना चाहिए।
- जीएसटी अधिकारियों द्वारा न्यायपूर्ण व्यवहार: जीएसटी अधिकारियों को करदाताओं के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करने एवं कानून का पालन करने की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। अधिकारियों पर ऊपरी अधिकारियों के दबाव के कारण वे केवल राजस्व को ही ध्यान में रखकर सर्वे और वसूली करते हैं, जो अनुचित है। किसी भी मामले को निर्णय करते समय केवल राजस्व ही नहीं बल्कि न्याय का भी ध्यान रखना चाहिए, जो कई जगह नहीं हो रहा है। इसके लिए सतर्क एवं सख्त प्रयास किये जाने चाहिए.
- गरीब एवं असमर्थ लोगों के नाम से व्यापार: कुछ लोग गरीब एवं असमर्थ लोगों के आधार और पैन कार्ड लेकर उनके नाम से व्यापार करते हैं, जिससे उन पर कई लाखों रुपये की मांग कायम हो जाती है। कई जगह उनकी सहमति भी होती है जिसके पीछे कारण गरीबी, अज्ञान और लालच होता है, लेकिन इसके पीछे काम करने वाले कोई और होते हैं। जीएसटी के तहत एक ऐसा विंग बनाना चाहिए जो इस तरह से प्रताड़ित लोगों के पीछे के असली अपराधियों को पकड़कर उनसे वसूली कर सके।
कानूनन यहाँ विभाग सही होता है लेकिन इस पूरी व्यवस्था पर प्रहार जरुरी है ताकि छोटे छोटे लालच में फंसे ये गरीब एवं मजबूर लोग शिकार नहीं बने और फिर विभाग के लिए कई तरह की समस्याएं भी खड़ी करते हैं लेकिन विभाग इनसे वसूल कुछ नहीं कर पाता है क्यों इन लोगों के पास कुछ होता ही नहीं है . असली अभियान चला कर इनके पीछे से असली अपराधियों को पकड़ उनसे वसूली की जानी चाहिए.
- कर भुगतान के बावजूद ब्याज: जीएसटी में एक अजीब प्रावधान है कि यदि करदाता ने कर बैंक में जमा कर दिया है लेकिन किसी कारणवश रिटर्न देर से भरता है, तो उसे रिटर्न देर से भरने की पेनल्टी तो लगती ही है, साथ ही जमा किए गए पैसे का ब्याज भी लगता है। यह सही नहीं है। इस प्रावधान को समाप्त किया जाए ताकि करदाताओं को अनुचित ब्याज का बोझ न उठाना पड़े।
- ब्याज की उच्च दर: वर्तमान में जीएसटी के तहत ब्याज की दर 18% है, जो बाजार की ब्याज दर से बहुत अधिक है और व्यावहारिक नहीं है। 18% की ब्याज दर बहुत पहले की दर है, इसे कम किया जाना चाहिए। ब्याज दर को बाजार या बैंक दर से 2% अधिक रखा जाए, लेकिन 18% की दर अत्यधिक है। ब्याज की यह दर तब तय की गई होगी जब कि बैंक ब्याज दर और बाजार में ब्याज की दर की बहुत अधिक थी .
- ITC के लिए आवश्यक दस्तावेज: ITC का दावा करने के लिए आवश्यक दस्तावेजों की सूची स्पष्ट नहीं है। इसके कारण व्यापारियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे कुछ दस्तावेज सुनिश्चित किए जाएं जिनके होने पर ITC कभी न रुके, अन्यथा व्यापार करना असंभव हो जाएगा। इस सूची को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए ताकि व्यापारियों को सही जानकारी हो और वे बिना किसी बाधा के ITC का दावा कर सकें। कोई तो ऐसा तरीका हो जिससे व्यापारी सुनिश्चित हो सके कि अब उसकी ITC पूर्ण रूप से सुरक्षित है .
- जीएसटी काउंसिल का कर्तव्य: जीएसटी काउंसिल वर्तमान में करदाताओं की समस्याओं को हल करने में सक्षम नहीं है या यह काउंसिल का प्राथमिक कार्य नहीं है। इसके लिए जीएसटी काउंसिल के निर्माण के उद्देश्यों में परिवर्तन किया जाए ताकि जीएसटी काउंसिल करदाताओं की समस्याओं पर भी विचार कर सके और उन्हें हल करने के उपाय कर सके। यह बदलाव जीएसटी प्रणाली को अधिक समावेशी और प्रभावी बनाएगा, जिससे व्यापारियों को बेहतर समर्थन मिल सकेगा और उनकी समस्याओं का समाधान हो सकेगा।
अंत में जीएसटी में एक सार्थक एमनेस्टी जितनी जल्दी हो सके लाई जानी चाहिए ताकि करदाता जिनमें से अधिकत्तर MSME का हिस्सा है कर के आर्थिक भार , दंड और ब्याज से बच सके.
- सुधीर हालाखंडी
- [email protected]
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