अकाउंट्सअर्थात लेखे और बहीखाते इस समय ही नहीं पहले भी व्यापार का बहुत बडा हिस्सा रहे हैं लेकिन इस समय इसमें थोड़ी समस्या है क्यों कि व्यापार के इस महत्वपूर्ण हिस्से को कई जगह सिरे से ही किनारे कर दिया गया है और बहुत सी जगह इसका कारण एकाउंटिंग सॉफ्टवेर भी हैं जिन्हें नहीं समझ आने के कारण सब कुछ अकाउंटेंटऔर स्टाफ पर छोड़ दिया जाता है और यह कहा जाता है कि हमारे एकाउंट्स तो अकाउंटेंट और स्टाफ देखते हैं तो फिर आप को इस सच्चाई से अवगत हो जाइए कि अकाउंटेंट और स्टाफ एकाउंट्स देखते नहीं है वो तो सिर्फ एकाउंट्स लिखते हैं , देखना तो आपको है . एकाउंट्स केवल ऑडिट और इनकम टैक्स के लिए नहीं बल्कि पहले आपके लिए होते हैं ऑडिट तो केवल एक प्रक्रिया है जिसका आपको पालन करना है ये कोई लक्ष नहीं है. इसलिए जरुरी है कि आप भी अपने पूर्वजों की तरह लेखों का महत्त्व समझें और इस प्रतिस्पर्धा के युग में लेखों से प्राप्त सूचनाओं का आप अपने फायदे के लिए समुचित प्रयोग कर सकें. आपके पूर्वज अपने खातों में छोटा से भी फर्क आने पर ना खुद घर जाते थे ना अपने मुनीम को घर जाने देते थे लेकिन इस समय ऐसा देखने में आ रहा है कि कई जगह फर्क महीनों चलते रहते हैं और साल के अंत में उन्हें मिलाने या एडजस्ट करें के प्रयास किये जाते हैं.
आप यदि निरंतर अपने अकाउंट्स पर नजर रखते हैं तो यह लेख आपके लिए नहीं है क्यों कि फिर आपको किसी सुधार की जरुरत ही नहीं है फिर भी आप इस लेख को एक बार पढ़ तो लें ज्यादा समय नहीं लगेगा पर कुछ ना कुछ तो मिलेगा ही और अगर आपने अपने लेखों और अकाउंट्स पर ध्यान देना बिलकुल ही बंद कर दिया है तो फिर यह लेख सिर्फ और सिर्फ आप के लिए ही है .
आइये अपने घर में या पडौस में अब व्यापार से रिटायर हो चुके किसी पुराने सफल व्यापारी से मिलें और उन्हें बाताये कि मुझे मेरे व्यापार के एकाउंट्स देखने का समय ही नहीं मिलता है .. फिर आप उनकी प्रतिक्रिया जानकार भी अपनी आगे की राह तय कर सकते हैं .
कम्पुटर या अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर जिस पर आप इस समय पूरा -पूरा भरोसा कर चुके हैं ,कोई जादू नहीं है वो सिर्फ पुरानी महाजनी बहियों का इलेक्ट्रोनिक रूप है जिसकी गति बहुत तेज होती है लेकिन एंट्री तो उसमें किसी ना किसी को करनी ही होती है और किसी ना किसी को तो वह चेक करनी ही होती है और आप नियमित रूप से चेक करते हैं और गलतियां का सुधार करवाते रहते हैं तो आप व्यापार में आदर्श स्तिथि में है और आपको आगे भी कोई परेशानी नहीं आने वाली है . इस लिख को पढ़कर सभी यही करना शुरू कर दें यही इस लेख का अंतिम उद्देश्य है .
वर्ष के दौरान यदि आप सप्ताह में एक घंटा भी अपने अकाउंट्स देखने , उसे समझने और उससे मिली जानकारी को अपनी तरह से विश्लेषण कर उसका लाभ अपनी आगे की व्यापार की योजनाओं में प्राप्त कर सकते हैं. अकाउंट्स पर बराबर नजर रखने का पहला तो लाभ यह है कि आपको यह पता लगता है कि आपका स्टाफ कहीं अकाउंट्स केवल जीएसटी के रिटर्न भराने के लिए तो रख नहीं रहें है. विशवास मानिए मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ कई जगह सिर्फ यही हो रहा है और वर्ष के आखिर में वे अकाउंट्स पूरे करने की आदत डाल चुके हैं . ऐसा कई जगह हो रहा है और इस बीच में आयकर या जीएसटी का सर्वे हो जाता है तो परेशानी आपकी ही बढ़ेगी.
हर सप्ताह या हर 15 दिन में अकाउंट्स को यदि आप अपने अकाउंटेंट्स और स्टाफ के साथ बैठ कर अपने खाते अच्छी तरह देखते हैं तो आपको अपने स्टॉक की पोजीशन , लेनदारों और देनदारों की स्तिथि , स्टॉक जो बिक नहीं रहा है , अगला खरीद का आर्डर कितना देना है , ओवर स्टोकिंग नहीं है , बैंक ब्याज ज्यादा तो नहीं लगा रहा है , खरीद और बिक्री की कोई एंट्री छूटी तो नहीं है , कौनसी पार्टी आपको इनपुट क्रेडिट नहीं दे रही है की सूचनाएं समय से मिल जाती है वरना ये सब सूचनाएं जब वर्ष की समाप्ति के बाद आपको मिलती है तो उस समय तक सुधार का समय निकल चुका होता है और फिर रह जाता है सिर्फ एडजस्टमेंट का समय !!!
यदि आप इस बात से परेशान है कि आपका हर साल ऑडिट समय पर नहीं हो पाता है तो आपके अकाउंट्स सिर्फ कानूनी खाना पूर्ति के लिए ही रखे जा रहें है तभी तो वे ऑडिट की आखिरी तारीख तक उनपर काम चलता रहता है . आप यह मान लीजिये कि अकाउंट्स की उपयोगिता केवल ऑडिट, आयकर अथवा जीएसटी के लिए नहीं है बल्कि यह तो व्यापार का आधार है . आप नियमित अपने खाते देखते हैं तो आपके वार्षिक एकाउंट्स का 90 प्रतिशत काम तो 30 अप्रैल तक ही हो जाता है फिर बाकी में कोई ज्यादा परेशानी कैसे आ सकती है .
यहाँ यह ध्यान रखें कि एकाउंट्स और ऑडिट को लेकर यह समस्या छोटे और मझोंले उद्योग एवं व्यापार को ही ज्यादा आती है है क्यों कि इनका या तो खुद का InhouseAccounting Department नहीं होता है या होता है तो वह बहुत ही कमजोर होता है . बड़े व्यापार और उद्योग की यह समस्या ज्यादा नहीं होती है क्यों कि उनके एकाउंट्स लिखने और फिर उनको देखने के साधन और स्टाफ अलग- अलग होते हैं. सीधी सी बात है कि यदि आपके साधन सीमित हैं तो फिर थोड़ी मेहनत तो आपको खुद करनी ही होगी .
देखिये , व्यापार के तीन मुख्य अंग होते हैं – खरीद या निर्माण , बिक्री और अकाउंट्स . हम मुख्य रूप से पहले दो पर तो ध्यान देते हैं लेकिन अकाउंट्स पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं जब कि इस समय जो सरकार की सूचना तंत्र जितना अधिक विकसित है तो एकाउंट्स की और ध्यान नहीं देना हमारे लिए आने वाले समय में खतरनाक हो सकता है . यहाँ हमसे मतलब है वो कर दाता जिन्हें अपने ऑडिट करवाने में सितम्बर माह के अंतिम 15 दिन में ना सिर्फ परेशान होना पडा बल्कि कुछ जगह रातों को जागना भी पड़ता है ताकि अकाउंट्स पूरे होकर ऑडिट हो सके.
देखिये आपने एक कम्पुटर खरीद लिया है , एक फुल टाइम या पार्ट टाइम अकाउंटेंट रख लिया है लेकिन आप निश्चित अंतराल के साथ अपने अकाउंट्स या सम्बंधित दस्तावेज , लेनदार, देनदार, स्टॉक , बैंक व्यवहार एवं रोकड़ शेष नहीं देखते हैं और आपके पास हर सवाल का जवाब यही है कि मेरा अकाउंटेंट जाने यह सब . मैं माल खरीदूं / बेंचू या ये सब देखता रहूँ तो मेरा कहा लिखकर रख लीजिये आने वाला समय अब आपका नहीं है . आप एक निश्चित समय अकाउंट्स को दीजिये क्यों कि यह आपके व्यापार का महत्वपूर्ण अंग है और व्यापार आप का ही है . मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि आप एकाउंट्स खुद लिखिए लेकिन क्या लिखा जा रहा है उसे तो आपको हर सप्ताह या पखवाड़े में या माह में देखना चाहिए . सप्ताह में 2 घंटे इस काम के लिए बहुत है . आप चाहे तो 15 दिन में देख लीजिये और नहीं तो एक महीने में .. और आप एक महीने में भी नहीं देखना चाहते तो फिर आप अपने आप से पूछिए कि आप आखिर चाहते क्या हैं ? आप मान कर चलिए आने वाला समय आपके लिए असंभव स्तिथियां लाने वाला है. सतर्क हो जाइए और आज से ही काम शुरू कर दीजिये क्यों कि यह काम मुश्किल नहीं है और धीरे – धीरे आपकी रूचि इसमें बढ़ जायेगी और इसके फायदे भी समझना शुरू हो जाएगा .
आपसे पहले वाली पीढ़ी जब व्यापार करती थी तो उनके लिए खरीद , बिक्री और भुगतान से ज्यादा महत्वपूर्ण अकाउंट्स और लेखे होते थे तो सीधा तरीका है आपको भी अब यही करना होगा और अकाउंट्स को महत्त्व देना होगा और उन्हें समय -समय पर चेक करना होगा और अपने स्टाफ के साथ- साथ अपने आपको भी इसके लिये उत्तरदायी बनाना होगा.
-सुधीर हालाखंडी
word file link – अकाउंट्स का महत्त्व